ईश पैंठ संसार यह दोही वस्तु बिकाय। व्यवपारी मनु जीव है जो चाहै लै जाय।। जा चाहै लै जाय विभव कछु काम न आवै। ईश करैं वहं न्याय कर्म का फल भुगतावै।। कहैं रहमान बदी सग लैहौ नर्क परै तोरे शीश। लीजौ नेकी जगत महं स्वर्ग देंय तुम्हें ईश।।
हिंदी समय में मुंशी रहमान खान की रचनाएँ